Chapter 14, Verse 21

Text

अर्जुन उवाचकैर्लिंगैस्त्रीन्गुणानेतानतीतो भवति प्रभो।किमाचारः कथं चैतांस्त्रीन्गुणानतिवर्तते।।14.21।।

Transliteration

arjuna uvācha kair liṅgais trīn guṇān etān atīto bhavati prabho kim āchāraḥ kathaṁ chaitāns trīn guṇān ativartate

Word Meanings

arjunaḥ uvācha—Arjun inquired; kaiḥ—by what; liṅgaiḥ—symptoms; trīn—three; guṇān—modes of material nature; etān—these; atītaḥ—having transcended; bhavati—is; prabho—Lord; kim—what; āchāraḥ—conduct; katham—how; cha—and; etān—these; trīn—three; guṇān—modes of material nature; ativartate—transcend


Translations

In English by Swami Adidevananda

Arjuna said, "What are the marks of a person who has transcended the three Gunas? What is their behavior? And how do they transcend the three Gunas?"

In English by Swami Gambirananda

Arjuna said, "O Lord, by what signs is one known who has gone beyond these three qualities? What is their behavior, and how do they transcend these three qualities?"

In English by Swami Sivananda

Arjuna said, "What are the marks of one who has transcended the three qualities, O Lord? What is their conduct, and how do they go beyond these three qualities?"

In English by Dr. S. Sankaranarayan

Arjuna said, "O Master! With what characteristic marks does he who has transcended these three strands exist? What is his behavior? How does he pass beyond these three strands?"

In English by Shri Purohit Swami

Arjuna asked, "My Lord, how can one recognize someone who has transcended the qualities? How do they act and live beyond them?"

In Hindi by Swami Ramsukhdas

।।14.21।।अर्जुन बोले -- हे प्रभो ! इन तीनों गुणोंसे अतीत हुआ मनुष्य किन लक्षणोंसे युक्त होता है? उसके आचरण कैसे होते हैं? और इन तीनों गुणोंका अतिक्रमण कैसे किया जा सकता है?

In Hindi by Swami Tejomayananda

।।14.21।। अर्जुन ने कहा -- हे प्रभो ! इन तीनो गुणों से अतीत हुआ पुरुष किन लक्षणों से युक्त होता है ? वह किस प्रकार के आचरण वाला होता है ? और, वह किस उपाय से इन तीनों गुणों से अतीत होता है।।  


Commentaries

In English by Swami Sivananda

14.21 कैः by what? लिंगैः by marks? त्रीन् three? गुणान् Gunas? एतान् these? अतीतः crossed? भवति becomes? प्रभो O Lord? किमाचारः what (is his) conduct? कथम् how? च and? एतान् these? त्रीन् three? गुणान् Gunas? अतिवर्तते goes beyond.Commentary Arjuna said O Lord? by what characteristics may a man be recognised as having gone beyond the three alities What is the behaviour of that Trigunatita sage (one who has gone beyond the three alities) and how does he go beyond the world and is above the Gunas Tell me that.These are the characteristics of the sage who has gone beyond the Gunas others should cultivate them.Just as a king is able to remove the grievances and sorrows of his servants? so also the Lord is able to remove the sorrows of His devotees. That is the reason why Arjuna addresses Sri Krishna as Lord and uses the term Prabhu. By using this word? Arjuna hinted to the Lord that He alone was capable of relieving his sorrows and pains. (Cf.II.54)

In Hindi by Swami Ramsukhdas

।।14.21।। व्याख्या --   कैर्लिङ्गैस्त्रीन्गुणानेतानतीतो भवति प्रभो -- हे प्रभो मैं यह जानना चाहता हूँ कि जो गुणोंका अतिक्रमण कर चुका है? ऐसे मनुष्यके क्या लक्षण होते हैं तात्पर्य है कि संसारी मनुष्यकी अपेक्षा गुणातीत मनुष्यमें ऐसी कौनसी विलक्षणता आ जाती है? जिससे साधारण व्यक्ति समझ ले कि यह गुणातीत पुरुष हैकिमाचारः -- उस गुणातीत मनुष्यके आचरण कैसे होते हैं अर्थात् साधारण आदमीकी जैसी दिनचर्या और रात्रिचर्या होती है? गुणातीत मनुष्यकी वैसी ही दिनचर्यारात्रिचर्या होती है या उससे विलक्षण होती है साधारण आदमीके जैसे आचरण होते हैं जैसा खानपान? रहनसहन? सोनाजागना होता है? गुणातीत मनुष्यके आचरण? खानपान आदि भी वैसे ही होते हैं या कुछ विलक्षण होते हैंकथं चैतांस्त्रीन्गुणानतिवर्तते -- इन तीनों गुणोंका अतिक्रमण करनेका क्या उपाय है अर्थात् कौनसा साधन करनेसे मनुष्य गुणातीत हो सकता है सम्बन्ध --   अर्जुनके प्रश्नोंसे पहले प्रश्नके उत्तरमें भगवान् आगेके दो श्लोकोंमें गुणातीत मनुष्यके लक्षणोंका वर्णन करते हैं।

In Hindi by Swami Chinmayananda

।।14.21।। दर्शनशास्त्र के प्रारम्भिक अध्ययन के समय की अपरिहार्य कठिनाई और थकान दूर करने तथा अध्ययन को और अधिक मनोरंजन बनाने के लिये गीता की रचना संवाद शैली में की गई है। यह स्पष्ट है कि पूर्ण ज्ञानी भगवान् श्रीकृष्ण और मोहित पुरुष अर्जुन के इस संवाद में? कवि व्यास जी को तात्त्विक विवेचन के समय भी मानव स्वभाव का विस्मरण नहीं हुआ है। ज्ञानियों की किसी भी सभा में अर्जुन के प्रश्न बालसुलभ कौतूहल अथवा केवल बुद्धिचातुर्य के समान प्रतीत होंगे। तथापि जिस धैर्य के साथ भगवान् श्रीकृष्ण मध्यम बुद्धि के शिष्य के प्रश्नों का उत्तर देते हैं उससे ज्ञात होता है कि एक ब्रह्मनिष्ठ ज्ञानी पुरुष का यह कर्तव्य है कि उसको संयमी अथवा नास्तिक लोगों के द्वारा पूछे गये प्रश्नों के उत्तर भी विस्तारपूर्वक देने चाहिये।यदि ज्ञानदान की ऐसी स्वस्थ परंपरा को प्राप्त करने का सौभाग्य हमें मिला है? तथापि किसी कारण से? इसे रहस्य बनाये रखने की एक दुष्टभावना हमारी गौरवमयी संस्कृति की एक स्वस्थ परम्परा को लूटे लिये जा रही है। तत्त्वज्ञान के सिद्धान्तों को विचार मन्थन के द्वारा जब प्रकाश में नहीं लाया जाता? तब वे नष्टप्राय होने लगते हैं। प्रत्येक जिज्ञासु शिष्य को यह स्वतंत्रता है कि सर्वप्रथम तत्त्वज्ञान के सिद्धान्तों को भलीभाँति समझने के लिये प्रश्न पूछ सके। उन्हें समझने पर ही उनके महत्त्व को पहचाना जा सकता है। जब तक इस प्रकार की समझ और पहचान नहीं होती तब तक हम उन सिद्धान्तों को अपने दैनिक जीवन में नहीं जी सकते। हिन्दू दर्शन एक जीवनपद्धति है? न कि जीवन की ओर देखने का केवल एक दृष्टिकोण। इसलिए आवश्यक है कि इस ज्ञान को हम अपने जीवन में जियें।यहाँ अर्जुन ने तीन प्रश्न पूछे हैं (1) तीनों गुणों से अतीत हुये पुरुष के लक्षण क्या हैं जिनसे उसकी पहचान हो सकती है (2) उसका आचरण किस प्रकार का होगा और (3) किस प्रकार वह ज्ञानी पुरुष त्रिगुणों से अतीत होकर अपने आत्मवैभव को प्राप्त होता है इनके उत्तर में भगवान् श्रीकृष्ण सर्वप्रथम त्रिगुणातीत पुरुष के लक्षण बताते है

In Sanskrit by Sri Anandgiri

।।14.21।।सम्यग्धीफलं गुणातिक्रमपूर्वकममृतत्वमुक्तं श्रुत्वा मुक्तस्य लक्षणं वक्तव्यमिति प्रकृतं विवक्षित्वा प्रश्नमुत्थापयति -- जीवन्नेवेति। ये व्याख्याताः सत्त्वादयो गुणास्तत्परिणामभूतानध्यासानतिक्रान्तः सन्कैर्लिङ्गैर्ज्ञातो भवतीति तानि वक्तव्यानि सिद्ध्यर्थं पूर्वमनुष्ठेयानि पश्चादयत्नलभ्यानि लिङ्गानि? कानि तानीति पृच्छति -- कैरिति। यथेष्टचेष्टाव्यावृत्त्यर्थं प्रश्नान्तरं -- किमाचार इति। ज्ञानस्य गुणात्ययोपायस्योक्तत्वादुपायप्रकारजिज्ञासया प्रश्नान्तरं -- कथमिति।

In Sanskrit by Sri Dhanpati

।।14.21।।गुणातिक्रमेण सर्वानार्थनिवृत्तिपूर्वकामृतप्राप्तिलक्षणं सम्यग्ज्ञानफलं भगवतोक्तं श्रुत्वा प्रश्नबीजं प्रतिलभ्य गुणातीतस्य लक्षणमाचारं गुणातिक्रमेणोपायं च सम्यक् बुभूत्सुरर्जुन उवाच -- कैरिति। एतानुक्तान् त्रीन् गुणान् कैर्लिङ्गैश्चिह्नैरतीतोऽतिक्रान्तो भवति कैश्चिह्नैर्गुणातिक्रमणे प्रभुः समर्थो भवतीति सूचयन्संबोधयति प्रभो इति। अस्मादादिप्रश्नसमाधानेऽतिसमर्थोऽसीति वा संबोधनाशयः। कोऽस्याचार इति किमाचारः खतं च केन प्रकारेणैतान् त्रीन् गुणान् अतिवर्तते लिङ्गैराचारेण च गुणातीतस्य लक्षणं गुणातिक्रमोपायं च वदेत्यर्थः।

In Sanskrit by Sri Madhavacharya

।।14.21।।Sri Madhvacharya did not comment on this sloka.

In Sanskrit by Sri Neelkanth

।।14.21।।प्रकृतितो मुक्तिप्रकारे उक्तेऽथ मुक्तलक्षणानि पृच्छन्नर्जुन उवाच -- कैरिति। कैर्लिङ्गैश्चिह्नैस्त्रीन्गुणानेतान्व्याख्यातानतीतो भवति पुमान् हे प्रभो? स च किमाचारः कोऽस्याचारः कथं केन च प्रकारेणैतांस्त्रीन्गुणानतिक्रम्य वर्तते।

In Sanskrit by Sri Ramanujacharya

।।14.21।।अर्जुन उवाच -- सत्त्वादीन् त्रीन् गुणान् एतान् अतीतः कैः लिङ्गैः कैः लक्षणैः उपलक्षितो भवति किमाचारः केन आचारेण युक्तः असौ अस्य स्वरूपावगतेः लिङ्गभूताचारः कीदृशः इत्यर्थः। कथं च एतान् केनोपायेन सत्त्वादीन् त्रीन् गुणान् अतिवर्तते

In Sanskrit by Sri Sridhara Swami

।।14.21।।गुणानेतानतीत्यामृतमश्नुत इत्येतच्छ्रुत्वा? गुणातीतस्य लक्षणमाचारं गुणात्ययोपायं च सम्यग्बुभुत्सुरर्जुन उवाच -- कैर्लिङगैरिति। हे प्रभो? कैर्लिङ्गैः कीदृशैरात्मन्युत्पन्नैश्चिह्नैर्गुणातीतो देही भवतीति लक्षणप्रश्नः। क आचारो यस्येति,किमाचारः। कथं वर्तत इत्यर्थः। कथं च केनोपायेनैतांस्त्रीनपि गुणानतीत्य वर्तते तत्कथयेति।

In Sanskrit by Sri Vedantadeshikacharya Venkatanatha

।।14.21।।अत्र स्वावस्थानिरूपणाद्यर्थमर्जुनप्रश्नमवतारयति -- अथेति।कैर्लिङ्गैःकिमाचारः इत्यनयोरान्तरबाह्यरूपोपलक्षणपरत्वादेकराशित्वंकथं च इत्युपायस्य पृथक्प्रश्नश्चेत्यभिप्रेत्याहस्वरूपसूचनाचारप्रकारं गुणात्ययहेतुं चेति। लिङ्गशब्दस्य वेषादावपि प्रयोगात्तस्य चन लिङ्गं धर्मकारणम् इति गुणातीतोपलक्षणत्वायोगात् आन्तरशमाद्यसाधारणधर्मविवक्षामभिप्रेत्याहकैर्लक्षणैरिति।किमाचारः इत्यस्य कोऽस्याचार इति बहुव्रीहिमभिप्रेत्याहकेनाचारेण युक्तोऽसाविति। अत्राचारशब्दस्याव्यभिचारिबाह्यलिङ्गपरतामाहअस्य स्वरूपावगतेर्लिङ्गभूतेति। यद्यपि स्वसंवेद्यैरान्तरैः स्वस्मिन् गुणात्ययः प्रतीयेत? तथापि परेषु बाह्यैराचारैस्तदनुमानमिति तदर्थं पृथक्प्रश्न इति भावः। कथंशब्दस्यात्रोपायभूतप्रकारपरतायाः प्रतिवचनप्रकारेणावगतत्वात् प्रतिक्षेपपरतामनुष्ठानबाह्यफलदशाप्रकारपरतां च व्युदस्यति -- केनोपायेनेति।

In Sanskrit by Sri Abhinavgupta

।।14.21।।कैरिति। ननु (S ननु यदि देही ननु कथं देही गुणा N ननु देही कथं गुणा -- ) यदि अयं देही? तत् कथं गुणातीतो भवति सर्वथैव हि कयाचित् चित्तवृत्त्या वर्तते? सा च त्रैगुण्यादन्यतमा अवश्यं भवति। अनेन अभिप्रायेण पृच्छति अर्जुनः।

In Sanskrit by Sri Jayatritha

।।14.21।।Sri Jayatirtha did not comment on this sloka.

In Sanskrit by Sri Madhusudan Saraswati

।।14.21।।गुणानेतानतीत्य जीवन्नैवामृतमश्नुत इत्येतच्छ्रुत्वा गुणातीतस्य लक्षणं चाचारं गुणातीतत्वोपायं च सम्यग्बुभुत्समानः अर्जुन उवाच -- एतान्गुणानतीतो यः स कैर्लिङ्गैर्विशिष्टो भवति यैर्लिङ्गैः स ज्ञातुं शक्यस्तानि मे ब्रूहीत्येकः प्रश्नः। प्रभुत्वाद्भृत्यदुःखं भगवतैव निवारणीयमिति सूचयन्संबोधयति प्रभो इति। क आचारोऽस्येति किमाचारः किं यथेष्टचेष्टः किंवा नियन्त्रित इति द्वितीयः प्रश्नः। कथंच केन च प्रकारेण एतांस्त्रीन्गुणानतिवर्ततेऽतिक्रमतीति गुणातीतत्वोपायः क इति तृतीयः प्रश्नः।

In Sanskrit by Sri Purushottamji

।।14.21।।एवमेतांस्त्रीन् गुणानिति भगवतोक्तं? तेनान्येऽपि गुणाः सन्ति? यैरेतदतिक्रमो भवतीति विचार्याऽर्जुनस्तथैव विज्ञापयति -- कैर्लिङ्गैरिति। हे प्रभो सर्वकरणसमर्थ कैर्लिङ्गैश्चिह्नैरेतान् बन्धनात्मकांस्त्रीन् गुणान् अतीतो भवति? अतिक्रमं कृत्वा अलौकिकदेहवान् भवतीत्यर्थः। ततो देहाप्त्यनन्तरं किमाचारः कीदृगाचारवान् च पुनः एतांस्त्रीन् गुणानतीत्य कथं केनोपायेन वर्त्तते तं कथयेत्यर्थः।

In Sanskrit by Sri Shankaracharya

।।14.21।। --,कैः लिङ्गैः चिह्नैः त्रीन् एतान् व्याख्यातान् गुणान् अतीतः अतिक्रान्तः भवति प्रभो? किमाचारः कः अस्य आचारः इति किमाचारः कथं केन च प्रकारेण एतान् त्रीन् गुणान् अतिवर्तते अतीत्य वर्तते।।गुणातीतस्य लक्षणं गुणातीतत्वोपायं च अर्जुनेन पृष्टः अस्मिन् श्लोके प्रश्नद्वयार्थं प्रतिवचनं श्रीभगवान् उवाच। यत् तावत् कैः लिङ्गैः युक्तो गुणातीतो भवति इति? तत् शृणु --,श्रीभगवानुवाच --,

In Sanskrit by Sri Vallabhacharya

।।14.21।।अथ गुणातीतस्य लक्षणमाचारं गुणात्ययहेतुं च जिज्ञासुरर्जुन उवाच -- कैर्लिङ्गैरिति। कैर्लक्षणैस्त्रीन् गुणानतीत उपलक्षितो भवति स किमाचारः कथं केनोपायेन हेतुरूपेण वा त्रीन् गुणानतिवर्त्तते इति।


Chapter 14, Verse 21