Chapter 10, Verse 35

Text

बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम्। मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः।।10.35।।

Transliteration

bṛihat-sāma tathā sāmnāṁ gāyatrī chhandasām aham māsānāṁ mārga-śhīrṣho ’ham ṛitūnāṁ kusumākaraḥ

Word Meanings

bṛihat-sāma—the Brihatsama; tathā—also; sāmnām—amongst the hymns in the Sama Veda; gāyatrī—the Gayatri mantra; chhandasām—amongst poetic meters; aham—I; māsānām—of the twelve months; mārga-śhīrṣhaḥ—the month of November-December; aham—I; ṛitūnām—of all seasons; kusuma-ākaraḥ—spring


Translations

In English by Swami Adidevananda

Of Saman hymns, I am the Brhatsaman; of meters, I am the Gayatri; of months, I am Margasira (Nov-Dec); and of seasons, I am the season of flowers.

In English by Swami Gambirananda

I am also the Brhat-sama of the Sama-mantras; of the meters, Gayatri. Of the months, I am Marga-sirsa, and of the seasons, spring.

In English by Swami Sivananda

Among the hymns, I am the Brihatsaman; among meters, I am Gayatri; among months, I am Margasirsha; among seasons, I am the flowery season.

In English by Dr. S. Sankaranarayan

Likewise, of the modes of singing, I am the Brhatsaman; of the metres, I am the Gayatri; of the months, I am Margasirsa; of the seasons, I am the season abounding with flowers.

In English by Shri Purohit Swami

Of hymns, I am Brihatsama; of meters, I am Garatri; among months, I am Margasheersha (December); and I am Spring among seasons.

In Hindi by Swami Ramsukhdas

।।10.35।। गायी जानेवाली श्रुतियोंमें बृहत्साम और वैदिक छन्दोंमें गायत्री छन्द मैं हूँ। बारह महीनोंमें मार्गशीर्ष और छः ऋतुओंमें वसन्त मैं हूँ।

In Hindi by Swami Tejomayananda

।।10.35।। सामों (गेय मन्त्रों) में मैं बृहत्साम और छन्दों में गायत्री छन्द हूँ; मैं मासों में मार्गशीर्ष (दिसम्बरजनवरी के भाग) और ऋतुओं में वसन्त हूँ।।  


Commentaries

In English by Swami Sivananda

10.35 बृहत्साम Brihatsaman? तथा also? साम्नाम् among Sama hymns? गायत्री Gayatri? छन्दसाम् among metres? अहम् I? मासानाम् among months? मार्गशीर्षः Margasirsha? अहम् I? ऋतूनाम् among seasons? कुसुमाकरः the flowery season (spring).Commentary Brihatsaman is the chief of the hymns of the SamaVeda. Brihat means big.Margasirsha From the middle of December to the middle of January. This has a temperate climate. In olden days it was usual to start with this month in counting the months of the year. The first place was given to this month.Kusumakara The beautiful flowery season? the spring.

In Hindi by Swami Ramsukhdas

।।10.35।। व्याख्या--'बृहत्साम तथा साम्नाम्'--सामवेदमें बृहत्साम नामक एक गीति है। इसके द्वारा इन्द्ररूप परमेश्वरकी स्तुति की गयी है। अतिरात्रयागमें यह एक पृष्ठस्तोत्र है। सामवेदमें सबसे श्रेष्ठ होनेसे इस बृहत्सामको भगवान्ने अपनी विभूति बताया है (टिप्पणी प0 564)।

In Hindi by Swami Chinmayananda

।।10.35।। मैं सामों में बृहत्साम हूँ भगवान् ने पहले कहा था कि? वेदों में सामवेद मैं हूँ। अब यहाँ सामवेद में भी विशेषता बताते हैं कि मैं सामों में बृहत्साम हूँ। ऋग्वेद की जिन ऋचाओं को सामवेद में गाया जाता है? उन्हें साम कहते हैं। उनमें एक साम वह है? जिसमें इन्द्र की सर्वेश्वर के रूप में स्तुति की गई है? जिसे बृहत्साम कहते हैं? जिसका उल्लेख भगवान ने यहाँ किया है। साममन्त्रों का गायन विशिष्ट पद्धति का होने के कारण अत्यन्त कठिन है? जिन्हें सीखने के लिए वर्षों तक गुरु के पास रहकर साधना करनी पड़ती है।मैं छन्दों में गायत्री हूँ वेद मन्त्रों की रचना विविध छन्दों में की गई है। इन छन्दों में गायत्री छन्द मैं हूँ। जन्मत सभी मनुष्य संस्कारहीन होते हैं। हिन्दू धर्म में बालक का उपनयन संस्कार गायत्री मन्त्र के द्वारा ही होता है? जिसकी रचना गायत्री छन्द में है। अत इस छन्द को विशेष महत्व प्राप्त है। गायत्री में चौबीस अक्षर हैं और इस मन्त्र के द्वारा सविता देवता की उपासना की जाती है। ब्राह्मण लोग प्रातकाल और सांयकाल संध्यावन्दन के समय इस मन्त्रोच्चार के द्वारा सूर्य को अर्ध्य प्रदान करते हैं।विश्व के किसी भी धर्म में किसी एक मन्त्र का जप इतने अधिक भक्तों द्वारा निरन्तर इतने अधिक काल से नहीं किया गया है जितना कि गायत्री छन्द में बद्ध गायत्री मन्त्र का। यह मन्त्र अत्यन्त शक्तिशाली एवं प्रभावशाली माना जाता है।मैं मासों में मार्गशीर्ष हूँ अंग्रेजी महीनों के अनुसार दिसम्बर और जनवरी के भाग मार्गशीर्ष हैं। भारत में? इस मास को पवित्र माना गया है। जलवायु की दृष्टि से भी यह सुखप्रद होता है? क्योंकि इस मास में न वर्षा की आर्द्रता या सांद्रता होती है और न ग्रीष्म ऋतु की उष्णता।मैं ऋतुओं में बसन्त हूँ प्रकृति को सुस्मित करने वाली बसन्त ऋतु मैं हूँ। समस्त सृष्टि की दृश्यावलियों को अपने सतरंगी सन्देश और सुरभित संगीत से हर्ष विभोर करने वाला ऋतुराज पर्वत पुष्पों के परिधान पहनते हैं। भूमि हरितवसना होती है। सरोवर एवं जलाशय उत्फुल्ल कमलों की हंसी से खिलखिला उठते हैं। मैदानों में हरीतिमा के गलीचे बिछ जाते हैं। सभी हृदय किसी उत्सव की उमंग से परिपूर्ण हो जाते हैं। सृष्टि के हर्षातिरेक को राजतिलक करने के लिए चन्द्रिका स्वयं को और अधिक सावधानी से सँवारती है।मुझे न केवल भव्य और दिव्य में ही देखना है और न केवल सुन्दर और आकर्षक में? वरन् हीनतम से हीन में भी मुझे पहचानना है मैं हूँ? जो हूँ सुनो

In Sanskrit by Sri Anandgiri

।।10.35।।वेदानां सामवेदोऽस्मीत्युक्तं तत्रावान्तरविशेषमाह -- बृहदिति। छन्दसां मध्ये गायत्री नाम यच्छन्दस्तदहमित्ययुक्तं छन्दसामृग्भ्योऽतिरेकेण स्वरूपभावादित्याशङ्क्याह -- गायत्र्यादीति।,द्विजातेर्द्वितीयजन्मजननीत्वादित्यर्थः। मार्गशीर्षो मृगशीर्षेण युक्ता पौर्णमास्यस्मिन्निति मार्गशीर्षो मासः सोऽहं पक्वसस्याढ्यत्वादित्याह -- मासानामिति। वसन्तो रमणीयत्वादिति शेषः।

In Sanskrit by Sri Dhanpati

।।10.35।।साम्नां गीतिविशेषाणआं वृहत्सामत्वामिद्धि हवामहे इत्यस्यामृचि गीतिविशेषे सर्वेश्वरत्वेनेन्द्रस्तुत्निरुपं अतिरात्रे पृष्ठस्तोत्रं श्रेष्ठत्वादहम्। नियताक्षरपादरुपच्छन्दोविशिष्ठानामृचां मध्ये द्विजत्वादिहेतुर्गायत्री ऋगहम्। मासानां मार्गशीर्षः सस्यादिसंपन्नत्वेन सुखजनकत्वात्। कुसुमाकरो वसन्तः पुषापकत्वेन शोभनत्वात्।

In Sanskrit by Sri Madhavacharya

।।10.35।।Sri Madhvacharya did not comment on this sloka.,

In Sanskrit by Sri Neelkanth

।।10.35।।बृहत्सामत्वामिद्धि हवामहे इत्यस्यामृचि गीयमानं साम पृष्ठ्यस्तोत्रे विनियुक्तमिन्द्रदेवत्यं तत् साम्नां मध्येऽहमस्मि। छन्दसां मध्ये गायत्री द्विजत्वसंपादनात्सोमाहरणाच्च श्रेष्ठाहमस्मि। कुसुमाकरो वसन्तः।

In Sanskrit by Sri Ramanujacharya

।।10.35।।साम्नां बृहत्साम अहम्? छन्दसां गायत्रीं अहम्? ऋतूनां कुसुमाकरः वसन्तः।

In Sanskrit by Sri Sridhara Swami

।।10.35।।बृहत्सामेति।त्वामिद्धि हवामहे इत्यस्यामृचि गीयमानं बृहत्साम तेन चेन्द्रः सर्वेश्वरत्वेन स्तूयत इति श्रैष्ठ्यं दर्शितम्। छन्दोविशिष्टानां मन्त्राणां मध्ये गायत्र्यहम्? द्विजत्वापादकत्वेन सोमाहरणेन च श्रेष्ठत्वात्। कुसुमाकरो वसन्तः।

In Sanskrit by Sri Vedantadeshikacharya Venkatanatha

।।10.35।।सामसु बृहत्साम्न उत्कृष्टत्वं श्रुत्यैव सिद्धंबृहच्च वा इदमग्र रथन्तरं च आस्तां वाक्च वै तन्मनञ्चास्तां वाग्वै रथन्तरं मनो बृहत्तद्बृहत्पूर्वं ससृजानं रथन्तरमत्यमन्यत तद्रथन्तरं गर्भमधत्त [म.ता. ] इति। गायत्र्याश्छन्दसां मातृत्वेनोत्कर्षः श्रुतिषु च्छन्दोविचित्यां च प्रपञ्चितः। यथा बह्वचोपनिषदि अग्रं वै छन्दसां गायत्री इति। मासेषु मार्गशीर्षस्यातिशयः वर्षगर्भाधानकालत्वान्मासाधिदेवेषु केशवादिषु प्रथमस्य केशवस्य मासत्वाद्ब्रतवर्गारम्भकालत्वाच्च। कुसुमाकरशब्देनैव वसन्तस्य प्रत्यक्षसिद्धः सर्वप्राणिसुखहेतुरतिशयो द्योतितः। वसन्ते वसन्ते ज्योतिषा यजेत वसन्ते दीक्षयेद्विप्रं ग्रीष्मै राजन्यमेव च इत्यादिभिश्च।

In Sanskrit by Sri Abhinavgupta

।।10.19 -- 10.42।।हन्त ते कथयिष्यामीत्यादि जगत्स्थित इत्यन्तम्। अहमात्मा (श्लो. 20) इत्यनेन व्यवच्छेदं वारयति। अन्यथा स्थावराणां हिमालय इत्यादिवाक्येषु हिमालय एव भगवान् नान्य इति व्यवच्छेदेन? निर्विभागत्वाभावात् ब्रह्मदर्शनं खण्डितम् अभविष्यत्। यतो यस्याखण्डाकारा व्याप्तिस्तथा चेतसि न उपारोहति? तां च [यो] जिज्ञासति तस्यायमुपदेशग्रन्थः। तथाहि उपसंहारे ( उपसंहारेण) भेदाभेदवादं,यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वम् (श्लो -- 41) इत्यनेनाभिधाय? पश्चादभेदमेवोपसंहरति अथवा बहुनैतेन -- विष्टभ्याहमिदं -- एकांशेन जगत् स्थितः (श्लो -- 42) इति। उक्तं हि -- पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि।।इति -- RV? X? 90? 3प्रजानां सृष्टिहेतुः सर्वमिदं भगवत्तत्त्वमेव तैस्तेर्विचित्रै रूपैर्भाव्यमानं (S तत्त्वमेतैस्तैर्विचित्रैः रूपैः ? N --,विचित्ररूपै -- ) सकलस्य (S?N सकलमस्य) विषयतां यातीति।

In Sanskrit by Sri Jayatritha

।।10.35।।Sri Jayatirtha did not comment on this sloka.

In Sanskrit by Sri Madhusudan Saraswati

।।10.35।।वेदानां सामवेदोऽस्मीत्युक्तं तत्रायमन्यो विशेषः। साम्रामृगक्षरारूढानां गीतिविशेषाणां मध्येत्वामिद्धि हवामहे इत्यस्यामृचि गीतिविशेषो बृहत्साम। तच्चातिरात्रे पृष्ठस्तोत्रं सर्वेश्वरत्वेनेन्द्रस्तुतिरूपमन्यतः श्रेष्ठत्वादहम्। छन्दसां नियताक्षरपादत्वरूपच्छन्दोविशिष्टानामृचां मध्ये द्विजातेर्द्वितीयजन्महेतुत्वेन प्रातःसवनादिसवनत्रयव्यापित्वेन त्रिष्टुब्जगतीभ्यां सोमाहरणार्थं गताभ्यां सोमो न लब्धोऽक्षराणि च हारितानि जगत्या त्रीणि त्रिष्टुभैकमिति चत्वारि तैरक्षरैः सह सोमस्याहरणेन च सर्वश्रेष्ठा गायत्री ऋगहम्।चतुरक्षराणि हवा अग्रे छन्दांस्यासुस्ततो जगती सोममच्छापतत्सा त्रीण्यक्षराणि हित्वा जगाम ततस्त्रिष्टुप्सोममच्छापतत्सैकमक्षरं हित्वापतत्ततो गायत्रीसोममच्छापतत्सा तानि चाक्षराणि हरन्त्यागच्छत्सोमं च तस्मादष्टाक्षरा गायत्री त्युपक्रम्यतदाहुर्गायत्राणि वै सर्वाणि सवनानि गायत्री ह्येवैतदुपसृजामो नैतत् इति शतपथश्रुतेःगायत्री वा इदं सर्वं भूतम् इत्यादिछान्दोग्यश्रुतेश्च। मासानां द्वादशानां मध्येऽभिनवशालिवास्तूकशाकादिशाली शीतातपशून्यत्वेन च सुखहेतुर्मार्गशीर्षोऽहम्। ऋतूनां षण्णां मध्ये कुसुमाकरः सर्वसुगन्धिकुसुमानामाकरोऽतिरमणीयो वसन्तः।वसन्ते ब्राह्मण्यमुपनयीत?वसन्ते ब्राह्मणोऽग्नीनादधीत?वसन्तेवसन्ते ज्योतिषा यजेत?तद्वै वसन्त एवाभ्यारभेत?वसन्तो वै ब्राह्मणस्यर्तुः इत्यादिशास्त्रप्रसिद्धोऽहमस्मि।

In Sanskrit by Sri Purushottamji

।।10.35।।साम्नां सामऋचां मध्ये बृहत्साम मद्विभूतिरित्यर्थः। छन्दसां मध्ये गायत्री मद्विभूतिः। मासानां मध्ये मार्गशीर्षोऽहम्। ऋतूनां मध्ये कुसुमाकरो वसन्तोऽस्मि।

In Sanskrit by Sri Shankaracharya

।।10.35।। --,बृहत्साम तथा साम्नां प्रधानमस्मि। गायत्री च्छन्दसाम् अहं गायत्र्यादिच्छन्दोविशिष्टानामृचां गायत्री ऋक् अहम् अस्मि इत्यर्थः। मासानां मार्गशीर्षः अहम्? ऋतूनां कुसुमाकरः वसन्तः।।

In Sanskrit by Sri Vallabhacharya

।।10.35।।बृहत्सामेति। त्वामिद्धि हवामहे [ऋक्सं.4।7।21।1] इत्यस्यां ऋचि गीयमानं बृहत्साम तेन चेन्द्रः सर्वेश्वरत्वेन स्तूयत इति श्रैठ्यं दर्श्यते। छन्दसां वेदमन्त्राणां वा मध्ये गायत्री मे विभूतिः? मत्स्वरूपप्रतिपादकत्वाद्भगवत्सेवकैश्चिन्तनीया। मासानां मध्ये मार्गशीर्षोऽहं कुमारिकाकामपूरणकालत्वात् भोगयोग्यत्वाच्च मे विभूतिः। ऋतूनां मध्ये कुसुमाकरो वसन्तोऽहं वसन्तेऽग्नीनादधीत [ ] इति श्रुतौ प्राशस्त्यत्वाज्जडेष्वपि प्रमोदापादकत्वाद्वृन्दावनाविरतवृत्तित्वाच्च मे विभूतिः।


Chapter 10, Verse 35