Chapter 10, Verse 29

Text

अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम्। पितृ़णामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम्।।10.29।।

Transliteration

anantaśh chāsmi nāgānāṁ varuṇo yādasām aham pitṝīṇām aryamā chāsmi yamaḥ sanyamatām aham

Word Meanings

anantaḥ—Anant; cha—and; asmi—I am; nāgānām—amongst snakes; varuṇaḥ—the celestial god of the ocean; yādasām—amongst aquatics; aham—I; pitṝīṇām—amongst the departed ancestors; aryamā—Aryama; cha—and; asmi—am; yamaḥ—the celestial god of death; sanyamatām—amongst dispensers of law; aham—I


Translations

In English by Swami Adidevananda

Of snakes, I am Ananta; of aquatic beings, I am Varuna; of manes, I am Aryama; of subduers, I am Yama.

In English by Swami Gambirananda

Among snakes, I am Ananta; among gods of the waters, Varuna; among the manes, Aryama; and among the maintainers of law and order, I am Yama (King of death).

In English by Swami Sivananda

I am Ananta among the Nagas; I am Varuna among water-deities; Aryaman among the Manes; I am Yama among the governors.

In English by Dr. S. Sankaranarayan

Of the snakes, I am Ananta; of the water-beings, I am Varuna; of the manes, I am Aryaman; of the controllers, I am Yama (the Death-god).

In English by Shri Purohit Swami

I am the king-python among snakes, I am the aqueous principle among those that live in water, I am the father of fathers, and among rulers I am death.

In Hindi by Swami Ramsukhdas

।।10.29।। नागोंमें अनन्त (शेषनाग) और जल-जन्तुओंका अधिपति वरुण मैं हूँ। पितरोंमें अर्यमा और शासन करनेवालोंमें यमराज मैं हूँ।

In Hindi by Swami Tejomayananda

।।10.29।। मैं नागों में अनन्त (शेषनाग) हूँ और जल देवताओं में वरुण हूँ; मैं पितरों में अर्यमा हँ और नियमन करने वालों में यम हूँ।।  


Commentaries

In English by Swami Sivananda

10.29 अनन्तः Ananta? च and? अस्मि (I) am? नागानाम् among Nagas? वरुणः Varuna? यादसाम् among watergods? अहम् I? पितृ़णाम् among the Pitris or ancestors? अर्यमा Aryaman? च and? अस्मि (I) am? यमः Yama? संयमताम् among governors? अहम् I.Commentary Ananta is the king of hooded serpents or cobras. He is firecoloured.Varuna is the king of the watergods.Waterdeities The gods connected with waters.Aryaman is the king of the manes.I am Yama? the witness of the acts of all living beings? who keeps account of the good and bad actions of the people.

In Hindi by Swami Ramsukhdas

।।10.29।। व्याख्या--'अनन्तश्चास्मि नागानाम्'--शेषनाग सम्पूर्ण नागोंके राजा हैं (टिप्पणी प0 560)। इनके एक हजार फण हैं। ये क्षीरसागरमें सदा भगवान्की शय्या बनकर भगवान्को सुख पहुँचाते रहते हैं। ये अनेक बार भगवान्के साथ अवतार लेकर उनकी लीलामें शामिल हुए हैं। इसलिये भगवान्ने इनको अपनी विभूति बताया है।

In Hindi by Swami Chinmayananda

।।10.29।। मैं नागों में शेषनाग (अनन्त) हूँ अनेक फणों वाले सर्प नाग कहलाते हैं। उन नागों में सहस्र फनों वाले शेषनाग को भगवान् विष्णु की शय्या कहा गया है जिस पर वे अपनी योगनिद्रा में विश्राम या शयन करते हैं। यहाँ श्रीकृष्ण कहते हैं कि? अनेक फणों वाले नागों में? वे सर्वाधिक शक्तिशाली और दिव्य नाग हैं? क्योंकि वे एकमात्र अधिष्ठान है जिस पर सृष्टकर्ता ब्रह्मा और पालनकर्ता विष्णु विश्राम और कार्य करते हैं।मैं जल देवताओं में वरुण हूँ पंच महाभूतों में चौथे तत्त्व जल का अधिष्ठाता देवता वरुण है। वैदिक काल में दृश्य जगत् की प्राकृतिक शक्तियों को दैवी आकृति प्रदान कर उनकी पूजा और उपासना की जाती थी। यह तो काफी समय पश्चात् हमने देवताओं के मानवीकरण की पौराणिक परम्परा प्रारम्भ की और फिर हम धार्मिक मतभेदों की कीचड़ और सांप्रदायिक पूर्वाग्रहों में फँस गये। जेरुसलम के मसीहा? वृन्दावन के गोपबाल और मक्का के पैगम्बर के अज्ञानी भक्त आपस में लड़ने लगे। वरुण का शरीर अर्धमत्स्य और अर्धमनुष्य का वर्णन किया गया है जो प्राय अरनाल्ड के मरमन (मत्स्यपुरुष) के समान है वरुण समुद्र का शासक और जल का अधिष्ठाता देवता है।मैं पितरों में अर्यमा हूँ हिन्दू धर्म में? मृत्यु भी? जीवन का ही एक अनुभव है। इसमें सूक्ष्म शरीर सदैव के लिए अपने वर्तमान निवास स्थान रूपी स्थूल देह को त्याग कर चला जाता है। इस सूक्ष्म शरीर (या जीव) का अपना अलग अस्तित्व बना रहता है? जिसे पितर कहते हैं।ये पितर (अथवा प्रेतात्माएं) एक साथ किसी लोक विशेष में रहते हैं? जिसे पितृलोक कहा जाता है। इसके पूर्व हम बारह आदित्यों के संबंध में वैदिक सिद्धांत को देख चुके हैं? जो बारह महीनों के अधिष्ठाता हैं। उनमें से एक अर्यमा नामक आदित्य को इस पितृलोक का शासक कहा गया है।मैं नियामकों में यम हूँ यमराज मृत्यु के देवता हैं। भारत में? हम भयंकरता उदासी और दुखान्त को भी पूजते हैं? क्योंकि हम जानते हैं कि ईश्वर शुभ और अशुभ आनन्दप्रद और दुखप्रद सभी वस्तुओं का अधिष्ठान है। हम समझौते के किसी ऐसे सिद्धांत से सन्तुष्ट नहीं होते? जिसमें हम ईश्वर का उन वस्तुओं से कोई संबंध स्वीकार नहीं करते? जो हमें अप्रिय हों।हमें प्रिय प्रतीत हो या न हो? मृत्यु तत्त्व ही हमारे जीवन का नियन्त्रक और नियामक है। मृत्यु ही? प्रत्येक क्षण? रचनात्मक विकास के लिए प्रगतिशील क्षेत्र तैयार करती है। युवावस्था की अभिव्यक्ति के लिए बाल्यावस्था का अन्त होना आवश्यक है। महाविद्यालय में प्रवेश पाने के लिए उच्चतर माध्यमिक विद्यालय को त्यागना पड़ता है। प्रगति अपने आप में जीवन का मात्र आंशिक चित्र और जीवन की सम्पूर्ण गति का एकांगी दर्शन है। प्रत्येक विकास के पूर्व नाश अवश्य होता है। इस प्रकार? नाश का रचनात्मक प्रगति में योगदान मृत्यु की सृजनात्मक कला कहलाती है।किसी भौतिक वस्तु की वर्तमान अवस्था का नाश किये बिना नवीन वस्तु की निर्मिति नहीं की जा सकती। भौतिक जगत् के इस नियम को समझने से ही हम इस युक्तिसंगत निष्कर्ष पर पहुँचते हैं। निरीक्षित नियम यह है कि कोई दो वस्तुएँ एक ही समय एक ही स्थान पर साथसाथ नहीं रह सकती हैं। जब एक चित्रकार पट पर फूल का चित्र बना रहा होता है? तब वह न केवल विभिन्न रंगों का प्रयोग ही करता है? वरन् उसकी रचनात्मक कला निरन्तर उस पट के सतह की पूर्वावस्था को नष्ट भी करती जाती है। इस प्रकार? जब जीवन को उसकी सम्पूर्णता में देखा जाता है? तब ज्ञात होता है कि मृत्यु के देवता का भी उतना ही महत्व है? जितना कि सृष्टि के देवता का।सृष्टि के साथसाथ उसी गति से यदि मृत्यु बुद्धिमत्तापूर्वक कार्य नहीं कर रही होती? तो जगत् में वस्तुओं की असीम और अनियन्त्रित बाढ़ आ गई होती। उस स्थिति में मात्र वस्तुओं की संख्या एवं परिमाण के कारण ही जीवन असंभव हो गया होता। यदि मृत्यु नहीं होती? तो हमारे पूर्व के असंख्य पीढ़ियों के प्रपितामह आदि अभी भी हमारे दो कमरों वाले घरों में रह रहे होते जब कुछ ही मात्रा में जनसंख्या में वृद्धि होने पर प्रकृति का सन्तुलन और जगत् की राजनीतिक शान्ति अस्तव्यस्त हो जाती है? यदि सृष्टिकर्ता के समान मृत्यु देवता भी कार्य नहीं कर रहे होते? तो जगत् की क्या स्थिति होती निश्चय ही? सभी नियामकों में यमराज प्रमुख्ा हैं और यह दिया हुआ उदाहरण अत्यन्त उपयुक्त एवं अनन्य है।भगवान् आगे कहते हैं

In Sanskrit by Sri Anandgiri

।।10.29।।प्रजनयतीति व्युत्पत्तिमाश्रित्याह -- प्रजनयितेति। सर्पा नागाश्च जातिभेदाद्भिद्यन्ते।

In Sanskrit by Sri Dhanpati

।।10.29।।अनन्तः शेषः। यादसां जलदेवतानाम्। संयमतां सम्यङ्नियमनं कर्वेताम्।

In Sanskrit by Sri Madhavacharya

।।10.29।।Sri Madhvacharya did not comment on this sloka.,

In Sanskrit by Sri Neelkanth

।।10.29।।नागानां सर्पावान्तरभेदानाम्। यादसां जलचराणाम्। संयमतां नियमनकर्तृ़णाम्।

In Sanskrit by Sri Ramanujacharya

।।10.29।।नागा बहुशिरसः? यादांसि जलवासिनः? तेषां वरुणः अहम्? अत्र अपि न निर्धारणे षष्ठी? दण्डयतां वैवस्वतः अहम्।

In Sanskrit by Sri Sridhara Swami

।।10.29।। अनन्त इति। नागानां निर्विषाणां राजा अनन्तः शेषोऽस्मि। यादसां जलचराणां राजा वरुणोऽस्मि। पितृ़णां राजा अर्यमास्मि। संयमतां नियमनं कुर्वतां मध्ये यमोऽस्मि।

In Sanskrit by Sri Vedantadeshikacharya Venkatanatha

।। 10.29 आयुधानाम् इत्यर्वाचीनायुधपरं? सुदर्शनाद्यपेक्षया दधीचेरस्थिसम्भवस्य वज्रस्यापि निकृष्टत्वात्। धेनूनां दोग्ध्रीणाम्।दिव्या सुरभिरिति यौगिकः कामधुक्शब्दोऽत्र व्यक्तिविशेषनिष्ठ इति भावः। प्रजनशब्देन जननहेतुत्वं कन्दर्पस्यासाधारणोऽतिशय उक्तः। स मदायत्त इत्यर्थः। अप्रजार्थकन्दर्पव्यवच्छेदार्थो वा प्रजनशब्दः। पर्याययोः सर्पनागशब्दयोः कथं पृथग्व्यपदेश इत्यत्राह -- सर्पा एकशिरसः नागा बहुशिरस इति। यादश्शब्देन वरुणस्यापि सङग्रहार्थमाह -- यादांसि जलवासिन इति। यद्वा जलजन्तुमात्रं विवक्षितम् तेषां पतित्वेन सम्बन्धो वरुणस्य तत्साजात्याभावाद्ग्राह्यः। अर्यमा पितृराजः। संयमतां संयच्छतामित्यर्थः। तदाहदण्डयतामिति।

In Sanskrit by Sri Abhinavgupta

।।10.19 -- 10.42।।हन्त ते कथयिष्यामीत्यादि जगत्स्थित इत्यन्तम्। अहमात्मा (श्लो. 20) इत्यनेन व्यवच्छेदं वारयति। अन्यथा स्थावराणां हिमालय इत्यादिवाक्येषु हिमालय एव भगवान् नान्य इति व्यवच्छेदेन? निर्विभागत्वाभावात् ब्रह्मदर्शनं खण्डितम् अभविष्यत्। यतो यस्याखण्डाकारा व्याप्तिस्तथा चेतसि न उपारोहति? तां च [यो] जिज्ञासति तस्यायमुपदेशग्रन्थः। तथाहि उपसंहारे ( उपसंहारेण) भेदाभेदवादं,यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वम् (श्लो -- 41) इत्यनेनाभिधाय? पश्चादभेदमेवोपसंहरति अथवा बहुनैतेन -- विष्टभ्याहमिदं -- एकांशेन जगत् स्थितः (श्लो -- 42) इति। उक्तं हि -- पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि।।इति -- RV? X? 90? 3प्रजानां सृष्टिहेतुः सर्वमिदं भगवत्तत्त्वमेव तैस्तेर्विचित्रै रूपैर्भाव्यमानं (S तत्त्वमेतैस्तैर्विचित्रैः रूपैः ? N -- विचित्ररूपै -- ) सकलस्य (S?N सकलमस्य) विषयतां यातीति।

In Sanskrit by Sri Jayatritha

।।10.29।।Sri Jayatirtha did not comment on this sloka.

In Sanskrit by Sri Madhusudan Saraswati

।।10.29।।नागानां जातिभेदानां मध्ये तेषां राजाऽनन्तश्च शेषाख्योऽहमस्मि। यादसां जलचराणां मध्ये तेषां राजा वरुणोऽहमस्मि। पितृ़णां मध्येऽर्यमा नाम पितृराजश्चाहमस्मि। संयमतां संयमं धर्माधर्मफलदानेनानुग्रहं निग्रहं च कुर्वतां मध्ये यमोऽहमस्मि।

In Sanskrit by Sri Purushottamji

।।10.29।।नागानां अविषाणां स्थिराणां मध्ये अनन्तस्तेषामधीशः शेषोऽस्मि। यादसां जलचराणां पतिर्वरुणोऽस्मि। पितृ़णां मुख्यः अर्यमा चास्मि। चकारेण सर्वेषां पितृरूपत्वमपि ज्ञापितम्। संयमतां नियमं कुर्वतां मुख्यो यमोऽस्मि।

In Sanskrit by Sri Shankaracharya

।।10.29।। --,अनन्तश्च अस्मि नागानां नागविशेषाणां नागराजश्च अस्मि। वरुणो यादसाम् अहम् अब्देवतानां राजा अहम्। पितृ़णाम् अर्यमा नाम पितृराजश्च अस्मि। यमः संयमतां संयमनं कुर्वताम् अहम्।।

In Sanskrit by Sri Vallabhacharya

।।10.29।।अनन्त इति। शेषोऽहम्। वरुणोऽधिकृतो लोकपालः। पितृ़णां मुख्योऽर्यमाऽहम्। श्राद्धान्नभोजी भगवत्स्वरूपतया श्राद्धे तदादिः पितृगणो यजनीयश्चिन्तनीयो भगवदीयेनेति भावः।


Chapter 10, Verse 29