अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः। गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः।।10.26।।
aśhvatthaḥ sarva-vṛikṣhāṇāṁ devarṣhīṇāṁ cha nāradaḥ gandharvāṇāṁ chitrarathaḥ siddhānāṁ kapilo muniḥ
aśhvatthaḥ—the banyan tree; sarva-vṛikṣhāṇām—amongst all trees; deva-ṛiṣhīṇām—amongst celestial sages; cha—and; nāradaḥ—Narad; gandharvāṇām—amongst the gandharvas; chitrarathaḥ—Chitrarath; siddhānām—of all those who are perfected; kapilaḥ muniḥ—sage Kapil
Of trees I am the Asvattha; of celestial seers, I am Narada; of the Gandharvas, I am Citraratha; of the perfected, I am Kapila.
Among all trees, I am the Ashvattha tree, and among divine sages, Narada. Among the Gandharvas, I am Citraratha; among the perfected ones, I am the sage Kapila.
Among all the trees, I am the Peepul; among the divine sages, I am Narada; among the Gandharvas, I am Chitraratha; among the perfected, I am the sage Kapila.
Of all trees, I am the Pipal tree; of the divine seers, Narada; of the Gandharvas, Citraratha; and of the perfected ones, the sage Kapila.
Of trees, I am the sacred fig tree; of divine seers, Narada; of heavenly singers, I am Chitraratha, their leader; and of sages, I am Kapila.
।।10.26।। सम्पूर्ण वृक्षोंमें पीपल, देवर्षियोंमें नारद, गन्धर्वोंमें चित्ररथ और सिद्धोंमें कपिल मुनि मैं हूँ।
।।10.26।। मैं समस्त वृक्षों में अश्वत्थ (पीपल) हूँ और देवर्षियों में नारद हूँ; मैं गन्धर्वों में चित्ररथ और सिद्ध पुरुषों में कपिल मुनि हूँ।।
10.26 अश्वत्थः Asvattha? सर्ववृक्षाणाम् among all trees? देवर्षीणाम् among Divine Rishis? च and? नारदः Narada? गन्धर्वाणाम् among Gandharvas? चित्ररथः Chitraratha? सिद्धानाम् among the Siddhas or the perfected? कपिलः Kapila? मुनिः sage.Commentary Devarshis are gods and at the same time Rishis or seers of Mantras.Siddhas are the perfected ones those who at their very birth attained without any effort Dharma (virtue)? Jnana (knowledge of the Self)? Vairagya (dispassion) and Aisvarya (lordship).Muni is one who does Manana or reflection one who meditates.
।।10.26।। व्याख्या--'अश्वत्थः सर्ववृक्षाणाम्'--पीपल एक सौम्य वृक्ष है। इसके नीचे हरेक पेड़ लग जाता है, और यह पहाड़, मकानकी दीवार, छत आदि कठोर जगहपर भी पैदा हो जाता है। पीपल वृक्षके पूजनकी बड़ी महिमा है। आयुर्वेदमें बहुत-से रोगोंका नाश करनेकी शक्ति पीपल वृक्षमें बतायी गयी है। इन सब दृष्टियोंसे भगवान्ने पीपलको अपनी विभूति बताया है।
।।10.26।। मैं समस्त वृक्षों में अश्वत्थ वृक्ष हूँ परिमाण और आयुमर्यादा दोनों की दृष्टि से अश्वत्थ अर्थात् पीपलवृक्ष को सर्वव्यापक और नित्य माना जा सकता है? क्योंकि वह प्राय कई शताब्दियों तक जीवित रहता है। हिन्दू लोग उसकी पूजा करते हैं। उसके साथ दिव्यता और पवित्रता की भावना जुड़ी हुई है। वैदिक परम्परा से परिचित लोगों को अश्वत्थ शब्द उपनिषदों में वर्णित संसार वृक्ष के रूपक का स्मरण भी कराता है। गीता के भी आगे आने वाले एक अध्याय में अश्वत्थ वृक्ष का वर्णन मिलता है? जो इस दृश्यमान मिथ्या जगत् का प्रतीक रूप है।मैं देवर्षियों में नारद हूँ देवर्षि नारद हमारी पौराणिक कथाओं के एक प्रिय पात्र हैं। नारद का वर्णन हरिभक्त के रूप में किया गया है। वे न केवल देवर्षियों में महान् हैं? वरन् वे प्राय इस पृथ्वीलोक पर अवतरित होकर लोगों के मन में गर्व अभिमान दूर करने के लिए जानबूझकर उनकी आपस में कलह करवाते हैं और अन्त में सबको भक्ति का मार्ग दर्शाकर स्वर्ग सुख की प्राप्ति कराते हैं। सम्भवत? श्रीकृष्ण स्वयं धर्मोद्धारक और धर्मप्रचारक होने के नाते नारद जी के प्रति उनके प्रचार के उत्साह के कारण आदर भाव रखते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार अनेक अधर्मियों को धर्म मार्ग में परिवर्तित कर नारद जी ने उन्हें मोक्ष दिलाया है। भगवान् श्रीकृष्ण और नारद दोनों की ही समान महत्वाकांक्षा होने से दोनों के मध्य स्नेह होना स्वाभाविक ही है।मैं गन्धर्वों में चित्ररथ हूँ गन्धर्वगण स्वर्ग के गायक वृन्द हैं? जो कला और संगीत के द्वारा देवताओं का मनोरंजन करते हैं। स्वर्ग के मनोरंजन के वे सितारे हैं। उन गन्धर्वों में सर्वश्रेष्ठ हैं चित्ररथ।मैं सिद्धों में कपिल मुनि हूँ ये सिद्ध पुरुष जादूगर नहीं हैं। इस संस्कृत शब्द का अर्थ है जिस पुरुष ने अपने लक्ष्य (साध्य) को सिद्ध (प्राप्त) कर लिया है। अत आत्मानुभवी पुरुष ही सिद्ध कहलाता है। ऐसे सिद्ध पुरुषों में भगवान् कहते हैं कि? मैं कपिल मुनि हूँ। मुनि शब्द से उस पारम्परिक धारणा को बनाने की आवश्यकता नहीं है? जिसमें मुनि को एक बृद्ध? पक्व केश वाले? प्राय निर्वस्त्र और साधारणत अगम्य स्थानों में विचरण करने वाले पुरुष के रूप में अज्ञानी चित्रकारों के द्वारा चित्रित किया जाता है। उसके विषय में ऐसी धारणा प्रचलित हो गई है कि वह एक सामान्य नागरिक के समान न होकर जंगलों का कोई विचित्र प्राणी है? जो विचित्र्ा आहार पर जीता है। वस्तुत मुनि का अर्थ है मननशील अर्थात् तत्त्वचिन्तक पुरुष। वह शास्त्रीय कथनों के गूढ़ अभिप्रायों पर सूक्ष्म? गम्भीर मनन करता है। ऐसे विचारकों में मैं कपिल मुनि हूँ।सांख्य दर्शन के प्रणेता के रूप में कपिल मुनि सुविख्यात हैं? जिनका संकेत यहाँ किया गया है। अनेक सिद्धांतों पर गीता का सांख्य दर्शन के साथ मतैक्य है। अत भगवान् यहाँ कपिल मुनि को अपनी विभूति की सम्मानित प्रतिष्ठा प्रदान करते हैं।पुन?
।।10.26।।सर्ववृक्षाणामित्यत्र सर्वशब्देन वनस्पतयो गृह्यन्ते।
।।10.26।।देवानामेव सतां मन्त्रदर्शित्वात् ऋषित्वं प्राप्तानां नारदोऽस्मिं। सिद्धानां जन्मनैव धर्मज्ञानादिनिरतिशयं प्राप्तानाम्।
।।10.26 -- 10.27।।सुखरूपः पाल्यते लीयते च जगदनेनेति कपिलः।प्रीतिः सुखं कमानन्दः इत्यभिधानात् प्राणो ब्रह्म कं ब्रह्म खं ब्रह्म [छां.उ.4।10।5] इति च। ऋषिं प्रसूतं कपिलं यस्तमग्रे ज्ञानैर्बिभर्ति (ज्ञा) जायमानं च पश्येत् [श्वे.उ.5।2] सुखादनन्तात्पालनाल्लीयनाच्च यं वै देवं कपिलमुदाहरन्ति इति (सामवेदे) बाभ्रव्यशाखायाम्।
।।10.25 -- 10.26।।एकमक्षरमोंकाराख्यम्। जपयज्ञो हिंसाशून्यत्वात्। स्थावराणां स्थितिमताम्।
।।10.26।।सर्ववृक्षाणां मध्ये पूज्यः अश्वत्थ एव अहम्। देवर्षीणां मध्ये परमवैष्णवो नारदः अहम् अस्मि। गन्धर्वाणां देवगायकानां मध्ये चित्ररथः अस्मि। सिद्धानां योगनिष्ठानां परमोपास्यः कपिलः अहम्।
।।10.26।।अश्वत्थ इति। देवा एव सन्तो मन्त्रदर्शनेन य ऋषित्वं प्राप्तास्तेषां मध्ये नारदोऽस्मि। सिद्धानामुत्पत्तित एवाधिगतपरमार्थतत्त्वानां मध्ये कपिलाख्यो मुनिरस्मि।
।।10.26।।अश्वत्थ इति। ननुसर्ववृक्षाणाम् इत्येतदनुपपन्नं? पारिजाताद्यपेक्षया अश्वत्थस्य निकृष्टत्वादित्यत्रोक्तंपूज्य इति। पारिजातादीनामप्यश्वत्थवत्पूज्यत्वं नास्तीति भावः। देवा मन्त्रदर्शिनो देवर्षयः? देवर्षिषु नारदस्य बहुप्रकारोऽतिशयो बहुषु प्रदेशेषु महाभारत एव प्रपञ्चितः। चित्ररथो गन्धर्वराजः।सिद्धानाम् इत्यादि पूर्वसञ्चितसुकृतविशेषवशाज्जन्मसिद्धाणिमाद्यैश्वर्यसिद्धिः।आदिविद्वान्सिद्धः इति कपिलमाहुः।ऋषिं प्रसूतं कपिलं (महान्तम्) यस्तमग्रे ज्ञानैर्बिभर्ति [श्वे.उ.5।2] इति च श्रुतिः।ददृशुः कपिलं तत्र वासुदेवं सनातनम् [वा.रा.1।40।25] इति चाहुः। अयमपि परशुरामादिवत्।
।।10.19 -- 10.42।।हन्त ते कथयिष्यामीत्यादि जगत्स्थित इत्यन्तम्। अहमात्मा (श्लो. 20) इत्यनेन व्यवच्छेदं वारयति। अन्यथा स्थावराणां हिमालय इत्यादिवाक्येषु हिमालय एव भगवान् नान्य इति व्यवच्छेदेन? निर्विभागत्वाभावात् ब्रह्मदर्शनं खण्डितम् अभविष्यत्। यतो यस्याखण्डाकारा व्याप्तिस्तथा चेतसि न उपारोहति? तां च [यो] जिज्ञासति तस्यायमुपदेशग्रन्थः। तथाहि उपसंहारे ( उपसंहारेण) भेदाभेदवादं,यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वम् (श्लो -- 41) इत्यनेनाभिधाय? पश्चादभेदमेवोपसंहरति अथवा बहुनैतेन -- विष्टभ्याहमिदं -- एकांशेन जगत् स्थितः (श्लो -- 42) इति। उक्तं हि -- पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि।।इति -- RV? X? 90? 3प्रजानां सृष्टिहेतुः सर्वमिदं भगवत्तत्त्वमेव तैस्तेर्विचित्रै रूपैर्भाव्यमानं (S तत्त्वमेतैस्तैर्विचित्रैः रूपैः ? N -- विचित्ररूपै -- ) सकलस्य (S?N सकलमस्य) विषयतां यातीति।
।।10.26 -- 10.27।।सिद्धानां कपिलो मुनिः इति कपिलशब्दं व्याचष्टे -- सुखेति। सुखरूप इति कः? पाल्यते जगदनेनेति पिः?पा रक्षणे [धा.पा.2।46] इत्यतः किः? लीयते जगदनेनेति लः।ली श्लेषणे [धा.पा.9।29] इत्यस्माड्डःला आदाने [धा.पा.2।48] इत्यतो वाकः। ततः कर्मधारयः। कशब्दस्य सुखवाचित्वेऽभिधानं प्रयोगं च पठति -- प्रीतिरिति। समग्रार्थे श्रुतिमाह -- ऋषिमिति। तं भगवन्तमृषिं कपिलं च पश्येत्। कथमृषिः सर्वज्ञत्वात्? इत्युच्यते। यः प्रसूतं पूर्वकल्पेषु जातं जायमानं वर्तमानं चैवमागामि च जगज्ज्ञानैर्बिभर्ति जानातीति यावत्। कथं कपिलः इत्यत उक्तं -- सुखादिति। यच्छब्दद्वयस्य तमित्यनेनान्वयः।
।।10.26।।सर्वेषां वृक्षाणां वनस्पतीनामन्येषां च। देवा एव सन्तो ये मन्त्रदर्शित्वेन ऋषित्वं प्राप्तास्ते देवर्षयस्तेषां मध्ये नारदोऽहमस्मि। गन्धर्वाणां गानधर्मिणां देवगायकानां मध्ये चित्ररथोऽहमस्मि। सिद्धानां जन्मनैव विनाप्रयत्नं धर्मज्ञानवैराग्यैश्वर्यातिशयं प्राप्तानामधिगतपरमार्थानां मध्ये कपिलो मुनिरहम्।
।।10.26।।सर्ववृक्षाणां मध्ये अश्वत्थः पिप्पलोऽस्मि। देवर्षीणां देवमन्त्रद्रष्टृ़णां मध्ये मदिङ्गितोपदेशकत्वान्नारदोऽस्मि। गन्धर्वाणां गायकानां मध्ये चित्ररथोऽस्मि। सिद्धानां अघिगतपरमार्थानां मध्ये स्वतोऽधीतपरमार्थरूपः कपिलो मुनिरस्मि।
।।10.26।। --,अश्वत्थः सर्ववृक्षाणाम्? देवर्षीणां च नारदः देवाः एव सन्तः ऋषित्वं प्राप्ताः मन्त्रदर्शित्वात्ते देवर्षयः? तेषां नारदः अस्मि। गन्धर्वाणां चित्ररथः नाम गन्धर्वः अस्मि। सिद्धानां जन्मनैव धर्मज्ञानवैराग्यैश्वर्यातिशयं प्राप्तानां कपिलो मुनिः।।
।।10.26।।अश्वत्थ इति। वैष्णवोऽयं ध्येयः पूज्यश्च। देवर्षीणां नारदोऽहं महाभागवतो मर्यादापुष्टिरसिकः। गन्धर्वाणां मध्ये चित्ररथो गायको वैष्णवत्वाच्चिन्तनीयः। कपिलस्तु भगवदवतारःसाङ्ख्यतत्त्ववक्तापुष्टिसर्गप्रणेता भगवद्विभूतिः।
Chapter 10, Verse 26